वाणी फ़ाउण्डेशन और टीमवर्क आर्ट्स प्राइवेट लिमिटेड की ओर से प्रत्येक वर्ष जयपुर बुकमार्क (जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल) में विशिष्ट अनुवादक पुरस्कार प्रदान किया गया है। यह पुरस्कार भारत के उन अनुवादकों को दिया जाता है जिन्होंने निरन्तर और कम-से-कम दो भारतीय भाषाओं के बीच साहित्यिक और भाषाई सम्बन्ध विकसित करने की दिशा में गुणात्मक योगदान दिया है।
6वाँ वाणी फ़ाउण्डेशन विशिष्ट अनुवादक पुरस्कार अनुवादक, लेखक और शिक्षाविद् अरुणावा सिन्हा को आज जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल, मुग़ल टेंट में वाणी प्रकाशन ग्रुप और जयपुर बुक मार्क की ओर से तथा टीमवर्क आर्ट्स के सहयोग से यह पुरस्कार प्रदान किया गया, पुरस्कार स्वरूप 1 लाख रुपये की प्रोत्साहन राशि के साथ वाणी प्रकाशन ग्रुप का सम्मान चिन्ह दिया गया। यह सम्मान सांसद और लेखक डॉ. शशि थरूर द्वारा दिया गया। इस पुरस्कार के निर्णायक मण्डल नमिता गोखले सह-निदेशक, जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल और साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित लेखिका, टीमवर्क आर्ट्स के प्रबन्ध निदेशक संजय के रॉय, वाणी फ़ाउंडेशन के चेयरमैन अरुण माहेश्वरी और वाणी प्रकाशन ग्रुप की कार्यकारी निदेशक अदिति माहेश्वरी-गोयल भी मौजूद थी।
डॉ. शशि थरूर ने छठा वाणी फ़ाउण्डेशन गण्यमान्य अनुवादक पुरस्कार देते हुये कहा कि अनुवाद होना और अच्छा अनुवाद होना किसी भी कृति के लिए अनिवार्य है ताकि वह एक से अधिक भाषाओं में पाठकों के बीच जा सके। ऐसे में अनुवादक के ऊपर सांस्कृतिक ज़िम्मेदारी है क्योंकि वह एक से अधिक भाषाओं के बीच में सांस्कृतिक सेतु बन्धन कर रहे हैं ।
यह पुरस्कार न केवल अनुवादक व लेखक के लिए एक सार्वजनिक मंच तैयार करता है बल्कि पुरस्कार प्राप्त करने वाले विजेता व उसके योगदान को भाषाओं के माध्यम से वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना को पोषित करता है। पुरस्कार स्वरूप एक लाख रुपये की प्रोत्साहन राशि के साथ वाणी प्रकाशन ग्रुप का सम्मान चिन्ह दिया जाता है।
अनुवाद की प्रक्रिया निश्चय ही यह दो भाषाओं को तकनीकी रूप से जानने और उनका आपस में यान्त्रिक आदान-प्रदान करने तक सीमित नहीं हैं। एक तरह से यह सांस्कृतिक, सामाजिक और राजनीतिक सम्बन्ध बनाने की प्रक्रिया है। यह प्रक्रिया जितना भाषा ज्ञान और तकनीकी कौशल की माँग करती है उससे कहीं अधिक हार्दिकता, मानवीय मन की समझ और लगातार अभ्यास की मांग करती है।
भाषाओं के सुखद आदान-प्रदान के विषय में वाणी फ़ाउण्डेशन के चेयरमैन अरुण माहेश्वरी ने कहा कि “समकालीन समय में भारतीय भाषाओं के बीच आदान-प्रदान ही हमारे देश की उन्नति की नींव है।”
इस पुरस्कार के सम्मानित निर्णायक मण्डल में नमिता गोखले- संस्थापक और सह-निदेशक, जयपुर लिटरेचर फ़ेस्टिवल, नीता गुप्ता- निदेशक, जयपुर बुक मार्क और संदीप भूतोड़िया सांस्कृतिक आलोचक शामिल हैं।
इस पुरस्कार की आवश्यकता इसलिए विशेष रूप से महसूस की जा रही थी क्योंकि वर्तमान स्थिति में दो भाषाओं के मध्य आदान-प्रदान को बढ़ावा देने वाले की स्थिति बहुत निम्न है। इसका उद्देश्य एक ओर अनुवादकों को भारत के गौरवशाली इतिहास और साहित्यिक सम्बन्धों को आदान-प्रदान की पहचान के लिए प्रेरित करना है, दूसरी ओर, भारत की सशक्त संस्कृति व परम्परा को वर्तमान और भविष्य के साथ जोड़ने के लिए प्रेरित करना है।
इस सम्मान के तहत वर्ष 2016 का प्रथम वाणी फ़ाउण्डेशन ‘डिस्टिंग्विश्ड ट्रांसलेटर अवार्ड’ मलयालम कवि अत्तूर रवि वर्मा को मलयालम से तमिल अनुवाद के लिए प्रदान किया गया। वर्ष 2017 में यह पुरस्कार प्रख्यात अनुवादक, कवयित्री, लेखिका और आलोचक डॉ. अनामिका को भोजपुरी से हिन्दी अनुवाद के लिए दिया गया। वर्ष 2018 में सांस्कृतिक इतिहासज्ञ और अनुवादक डॉ. रीता कोठारी को सिन्धी से अंग्रेज़ी अनुवाद ले लिए दिया गया और वर्ष 2019 में इस पुरस्कार से प्रख्यात कवि, कथाकार, अनुवादक और चित्रकार तेजी ग्रोवर को नवाज़ा गया। वर्ष 2020 में उर्दू से अनुवाद के लिए रख्शंदा जलील को पुरस्कृत किया गया है।
नमिता गोखले- संस्थापक और सह-निदेशक, जयपुर लिटरेचर फ़ेस्टिवल, ने कहा- “भारतीय उपमहाद्वीप में साहित्यिक अनुवाद के क्षेत्र में बहुत कुछ किया जाना है, और मैं यह जानती हूँ कि अरुणावा सिन्हा के सूक्ष्म रूपान्तरण भारत की कई भाषाओं और साहित्य को धारणा और आत्म-जागरूकता के नवीन स्तर पर लायेंगे।” इस अवसर पर सांस्कृतिक आलोचक संदीप भूतोड़िया ने कहा – “वाणी फ़ाउण्डेशन विशिष्ट अनुवादक पुरस्कार 2022 के लिए जूरी का हिस्सा बनना गर्व की बात है क्योंकि वे लगातार भारतीय भाषाओं को बढ़ावा देने के लिए काम करते आ रहे हैं और उन अनुवादकों को सम्मानित करते रहे हैं जिन्होंने भारतीय भाषाओं के बीच साहित्यिक और भाषाई आदान-प्रदान की सुविधा प्रदान की। इस वर्ष के पुरस्कार विजेता अरुणावा सिन्हा ने क्लासिक, आधुनिक और समकालीन बांग्ला कथा-साहित्य और कथेतर का अंग्रेज़ी में अनुवाद किया है और ऐसा करके उन्होंने भाषाओं और संस्कृति के बीच एक कड़ी बनाई है। एक ऐसे व्यक्ति के रूप में जो भारतीय भाषाओं को बढ़ावा देने के लिए कार्य करता है। हम ‘अपनी भाषा अपने लोग’ में विश्वास करते हैं और यह हमारे फ़ाउण्डेशन की टैगलाइन भी है जो भारत की विविध भाषाओं, साहित्य और संस्कृति के संगम का उत्सव मनाता है।”
पब्लिशिंग कंसल्टेंट नीता गुप्ता का कहना है – “विपुल जैसा शब्द भी कम पड़ जाता है जब आप अरुणावा सिन्हा के अनुवाद कार्य की बात करते हैं। आपकी अनूदित कृतियाँ अनुवाद के क्षेत्र में एक मिसाल हैं।”
अरुणावा सिन्हा का परिचय:
अरुणावा सिन्हा ने क्लासिक, आधुनिक और समकालीन बांग्ला कथा-साहित्य और कथेतर का अनुवाद अंग्रेज़ी भाषा में किया है। उनके द्वारा अब तक लगभग उनहत्तर अनुवाद कार्य प्रकाशित हो चुके हैं।
वे शंकर की ‘चौरंगी’ (2007) और अनीता अग्निहोत्री की ‘सत्रह’ (2011) के लिए
दो बार क्रॉसवर्ड अनुवाद पुरस्कार प्राप्त कर चुके हैं।
अरुणावा सिन्हा बुद्धदेव बोस की ‘व्हेन द टाइम इज़ राइट’ के लिए म्यूज़ियम इंडिया अनुवाद अवार्ड (2013) के भी विजेता रहे हैं।
वर्ष 2009 में शंकर की ‘चौरंगी’ के अनुवाद हेतु ‘द इंडिपेंडेंट फॉरेन फिक्शन पुरस्कार’, और वर्ष 2021 में तसलीमा नसरीन की कृति ‘बेशर्म’ के लिए राष्ट्रीय अनुवाद पुरस्कार के लिए उनका चुनाव किया गया।
ग्लोबल लिटरेचर इन लाइब्रेरी इनिशिएटिव ट्रांसलेटेड वाई ए बुक प्राइज़ के लिए एम.डी. ज़फ़र इक़बाल की कृति ‘राशा’ के अनुवाद और भास्कर चक्रवर्ती की ‘थिंग्स दैट हैपन एंड अदर पोएम्स’ के अनुवाद के लिए सर्वश्रेष्ठ अनूदित पुस्तक पुरस्कार, यूएसए, 2018 के लिए लम्बे समय से उनका नाम सूचीबद्ध है।
भारत के अलावा उनके द्वारा किये गये अनुवाद यूके और यूएस में अंग्रेज़ी भाषा में प्रकाशित हो चुके हैं और कई यूरोपीय और एशियाई देशों में उनके अनुवाद भविष्य में प्रकाशित होने हैं।
वर्तमान में अरुणावा सिन्हा अशोक विश्वविद्यालय में रचनात्मक लेखन विभाग में सह-प्राध्यापक और अशोक सेंटर फॉर ट्रांसलेशन के सह-निदेशक हैं।