रम्बास कविताःसान्निध्य

 

सान्निध्य

हे
सभ्य
मानिष!
नर नारी!
नदेउ पीड़ा.
बसुन्धरा लाई
प्रतिपालित   भयौ
मातृकोषमा   हुर्कियौ
नगुमाउ  न्यानो   छाहारी
खोज्छ  जीव,  उद्भिद  जगत
त्यो   बरद हस्तको स्पर्श
तिम्रो आश, तिम्रो पाश
प्याशो छ ममताको
जगाउ  बिबेक
नबन  अन्धो
मानवता
जगाइ
हेर
त!

राधिका उपाध्याय
विश्वनाथ असम