मन में बेचैनी है काफी
फिर बसंत आएगा क्या
तरह–तरह के प्रेम रंग से
मन को महकाएगा क्या?
पुष्प वाटिका की सुंदरता
मन को प्रतिपल हर्षाती है
इस वसंत की आभा सुरभित
सब प्रेम–प्रेम कर जाती है।
यह वसंत प्रेम में जलकर
प्रेम–पान ही करता है
प्रेम–रंग से सींच–सींच कर
जग को,यह तो हँसता है।
मुखरित होती हैं अभिलाषाएँ
यह वसंत का प्रेम दिवस है
जग सुंदर,जीवन सुंदर
रस भरा, सरस यह प्रेम दिवस है।
प्रेम करें जिससे भी जग में
बेईमानी दूर रहे
प्रेम ही वाणी,प्रेम ही भाषा
चहुँ ओर प्रेम में प्रेम बसे।
मौसम तो परिवर्त्तितत होगा
प्रेम,प्रेम में,प्रेम रहेगा
यही प्रतिपल जीतेगा सबको
सदा प्रेम की जय ही जय हो!
प्रेम! प्रेम! प्रतिपल जय–जय हो!
अनिल कुमार मिश्र,
झारखंड
भारत
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