रम्बास कविता \प्रवास

 

प्रवास

हे
प्रिय !
अड़ि  न्न
प्र वा स मा
तन   मन   यो।
दुःख्छ  कता  कता
आफ्नो  जस्तो  हुन्न  यो।
चाहिँदो      रहेछ       माया
जहाँ   बसे   पनि   यो     काया।
सम्बन्ध   पनि  त  कस्ता     कस्ता !
जीवन   नै   बेपार         जस्ता।
जो    पनि    तौल   नै   गर्ने
‌‌ धन    र     पौरखमा।
आत्मीयता शून्य
‌‌ चलायमान
रोबोटझैं
‌ ‌‌हुँ दछ
मन
‌ नै।

नीता तामाङ्ग
दार्जिलिङ

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